गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

अक्सर सोचती हूँ...

स्वप्न कब सार्थक होते है?

अक्सर सोचती हूँ

हर बार प्रश्न अनुत्तरित ही रहता है

क्या तुम बता सकते हो?

कोई तरकीब इन स्वप्नों को

सार्थक करने की...

जो अनघड विचार घूमते है

अंतर्मन की कैद में,

स्वच्छन्द विचरण करने देने की

कोई भी एक तरकीब यदि हो

बताओ ना

बहुत आभारी रहूंगी...



उन्हें रिहा करके

नए ढंग, नए आकार में

फिर ढाल नयन में भर लूंगी

तुम भी चलना चाहो तो चल सकते हो

मेरी अनवरत स्वप्न यात्रा पर

साथ साथ मेरे

लेकिन शर्त एक है

ना रोकना,ना टोकना

बस होके मौन,विचरना

महसूस करना उनकी

कोमल संवेदनाओ को

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...